गुरुवार, 1 जनवरी 2009

लो पुनः मधुमास आया

लो पुनः मधुमास आया।
व्यस्त हो सबने संभाली, रंग-रंगों की पिटारी,
कुहुक फ़िर अनजान डोली, चेतना मन की बिसारी।
विकल प्राणों में विहंसती,
मधुर, पुलकित प्यास लाया।
लो पुनः मधुमास आया॥

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खोल कर घूंघट नवेली, कली बरबस मुस्कुराई,
आह!कितना है मनोहर, सोचती वह कसमसाई।
तृषित नयनों में झलकता,
स्वप्न सौ-सौ बार छाया।
लो पुनः मधुमास आया॥

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सांवली, प्यारी, सलोनी, कामिनी फ़िर खिलखिलाई,
खिल उठी सरसों सुनहली, पुलक तन-मन में समाई।
हाय! यह पापी पवन फ़िर.
विकल मन में आ समाया,
लो पुनः मधुमास आया॥

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कहीं धरती लहलहाती, कहीं बंजर में न पाती,
कहीं रस राग का मेला, कहीं खाली पेट छाती।
हास और परिहास का रंग,
क्यों विधाता को न भाया।
लो पुनः मधुमास आया॥