मंगलवार, 18 नवंबर 2008

मीत मेरे क्या साथ न दोगे?

मीत मेरे क्या साथ न दोगे?
शून्य भरा एकाकी पथ है।
------सांझ ढली पंछी घर आए,
------अपना कहाँ, किधर डेरा है।
सोपानों तक पहुँच न पाऊँ,
परवशता ने आ घेरा है।
------दो पलकों के दीप जला दो,
------भूल रहा अँधियारा पथ है।
बीहड़ वन, पथरीली राहें,
दूर क्षितिज तक वीरानी है।
------पैर थके, बोझिल हैं साँसें,
------जाने की हमने ठानी है।
प्राणों को यदि तुम मिल जाओ,
हर ठोकर संगम तीरथ है।
-------लो, सीमा तक आ ही पहुंचे,
-------अन्तिम यह डेरा अपना है।
एक कदम बस है अब चलना,
शेष अभी सपना-सपना है।
-------आँखें तेरी बाट जोहतीं,
-------जर्जर यह जीवन रथ है।

शनिवार, 1 नवंबर 2008

शिखा तू एक अकेली जल

शिखा तू एक अकेली जल।
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तम् की हर एक तह गहरी है,
नीरवता कितनी बहरी है।
अन्तर की पीड़ा को बेसुध, आप जलाती चल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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तिल-तिल कर मिटती साँसें हैं।
कैसी जग की भुज्पाशें हैं।
धागों के कच्चे बंधन में, सिहर न तू निश्छल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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क्यों सपनों की रात सजाती।
बरबस मन को क्यों भरमाती।
क्यों दीप आकाश जलाये, गिनती है पल-पल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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कैसी तेरी प्रीत घनेरी।
आतुरता करती है फेरी।
निर्मम, निष्ठुर, श्वेत पास को धुलती जा मल-मल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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नहीं ज्योति ने तुझे छला है।
सुख का सपना कहाँ जला है।
पगली, तेरे साथ तिमिर है, विकसित कर शतदल।
शिखा तू एक अकेली जल॥