शिखा तू एक अकेली जल।
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तम् की हर एक तह गहरी है,
नीरवता कितनी बहरी है।
अन्तर की पीड़ा को बेसुध, आप जलाती चल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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तिल-तिल कर मिटती साँसें हैं।
कैसी जग की भुज्पाशें हैं।
धागों के कच्चे बंधन में, सिहर न तू निश्छल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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क्यों सपनों की रात सजाती।
बरबस मन को क्यों भरमाती।
क्यों दीप आकाश जलाये, गिनती है पल-पल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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कैसी तेरी प्रीत घनेरी।
आतुरता करती है फेरी।
निर्मम, निष्ठुर, श्वेत पास को धुलती जा मल-मल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
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नहीं ज्योति ने तुझे छला है।
सुख का सपना कहाँ जला है।
पगली, तेरे साथ तिमिर है, विकसित कर शतदल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
6 टिप्पणियां:
Andhakar Ke Saath Jine Ki Anubhuti Ko Jankar Nahut Sunder Shabdo Main Rachi Aapne Ye Kavita
bahut khoob. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. लिखते रहिये. शुभकामनयें.
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मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं.
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
swagat hai . Badhaai ho . Likhate rahiye
नहीं ज्योति ने तुझे छला है।
सुख का सपना कहाँ जला है।
पगली, तेरे साथ तिमिर है, विकसित कर शतदल।
शिखा तू एक अकेली जल॥
अति सुंदर, सार-गर्भित रचना
प्रवाह बहुत ही अच्छा
kalyan ho, narayan narayan
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