शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

कैसे कह दूँ प्यार न कर तू

कैसे कह दूँ प्यार न कर तू।

सरसिज के मधुरिम सम्पुट में,
बन्दी हो भौंरे सोते हों।
सपनों की अनजान डगर पर,
दीवाने गुनगुन करते हों।

कैसे कह दूँ उन भौंरों से,
मधु गुँजार न कर तू।

चन्दा की बाँहों में बँधकर,
कुमुद खिलखिलाकर हँसती है।
सौरभ से भर कर इठलाती,
वायु भी थम-थम चलती है।

कैसे कह दूँ जीवन-धन से,
रस संचार न कर तू।

रजनी की श्यामल अलकों में,
चन्दा ने सुधबुध हारी हो।
प्रियतम की रस की बातों में,
परवशता मन की थारी हो।

कैसे कह दूँ पागल मन से,
रे अभिसार न कर तू।
कैसे कह दूँ प्यार न कर तू।

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