बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

पथ भूल न जाना तुम राही

पथ भूल न जाना तुम राही।
सूने कगरों से टकरा कर,
पर्वत के अंचल में बहना।
बिखरी टूटी पगडंडी में,
पग रोक सिमट आगे बढ़ना।
पथ छा लेंगी आगे बढ़ कर,
लघु हिमखंडों की उन्मादें।
यौवन की मधु-रस-धार भरी,
भुजपाश न फंसना तुम राही।
पथ भूल न जाना तुम राही।।
आयेंगी लास-विलास लिए,
मृदु सुमन समूहों की पातें।
झुक, झूम-झूम कर चूमेंगीं,
ये धूल भरी बोझिल साँसें।
न्यौछावर कर देगीं कलियाँ
नव सौरभ, यौवन, उन्मादें।
सुरभित, मस्तानी, मदमाती,
वय भार न दबना तुम राही।
पथ भूल न जाना तुम राही॥
कुछ ठहर-ठहर, कुछ झूम-झूम,
आयेंगी पछुआ सरसाती।
गुन-गुन के मिस कुछ कहती सी,
भ्रमावलि घूमेंगी इठलाती।
चू-चू कर रस रसालों से,
बह-बह कर मद इन ताडों से,
देगी बस प्याले के प्याले,
मधुपान न करना तुम राही।
पथ भूल न जाना तुम राही।।
दूर, दूर वह दूर देश है,
जिस तक तुमको जाना है।
कठिन-कठिन वह कठिन लक्ष्य है,
जिसको तुमको पाना है।
जर्जर तन है, गलित अंग है,
देश तपस्या भारी है।
कठिन शक्य ले, लक्ष्य अंक ले,
क्रान्ति जगाना तुम राही।
पथ भूल न जाना तुम राही।।

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