शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

प्रीत करूँ यह रीति नहीं क्या?

प्रीत करूँ यह रीति नहीं क्या?
शलभ प्राण की पीड़ा लेकर,
भाव-कुभाव सभी सहता है।
शिखा विचारी ज्वाला पूरित,
ज़रा न उसका वश चलता है।

रोकर, हंस कर गले मिले तो,
प्राण गँवाए, जी जलता है।
कौन कहे यह प्रेम-मिलन है,
जग में इसकी रीति नहीं क्या?
प्रीत करूँ यह रीति नहीं क्या?

गुन-गुन कर भौंरा आता है,
मधुर पवन कुछ कह जाता है।
कलियों के मन के सब सपने,
कैसे रुके, छलक जाता है।

बुझती किसकी प्यास अरे,
मन की तृष्णा बाक़ी है।
बिखर गए सौरभ पांखुर सब,
कलियों की यह जीत रही क्या?
प्रीत करूँ यह रीति नही क्या?

सागर के भीतर हलचल है,
सरिता भी प्यासी की प्यासी।
वह तो बढ़ कर राह बनाता,
वह काले कोसों से आती।

किंतु मिलन के मधुर क्षणों में,
जलधारा यह बिखर गयी क्यों?
सागर भी सिमटा जाता है,
दोनों पर यह बीत रही क्या?
प्रीत करूँ यह रीति नहीं क्या?

3 टिप्‍पणियां:

E-Guru Rajeev ने कहा…

आपका लेख पढ़कर हम और अन्य ब्लॉगर्स बार-बार तारीफ़ करना चाहेंगे पर ये वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) बीच में दीवार बन जाता है.
आप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ 'ब्लॉग्स पण्डित' पर.

Yusuf Kirmani ने कहा…

स्वागत है। निरंतरता बनाए रखें।

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

किंतु मिलन के मधुर क्षणों में,
जलधारा यह बिखर गयी क्यों?
सागर भी सिमटा जाता है,
दोनों पर यह बीत रही क्या?
प्रीत करूँ यह रीति नहीं क्या?
सुंदर शब्द रचना से कसी मार्मिक भावाभिव्यक्ति हिन्दी चिठ्ठा जगत में आपका बहुत स्वागत है निरंतरता की चाहत है
मेरा आमंत्रण स्वीकारें समय निकाल कर मेरे चिट्ठे पर भी पधारें