शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

तुम चांदनी बन कर आना

मैं तारे गिन-गिन जागूँ।
तुम चांदनी बन कर आना।।

जब उषा का श्रृंगार सजे,
कलियों को जब मधुमास लगे,
नव चटक ताल पर झूम-झूम,
जब उन्मुक्त भौरें नाच उठें।

मैं गीत मिलन के गाऊँ।
तुम मल्यालिन बन कर आना॥

जब तपती खूब दुपहरी हो,
धरती पर आग बरसती हो,
प्राणों को लेकर चूर-चूर,
छाया भी आप अकेली हो।

में तपन बीच सो जाऊं।
तुम सपने बन कर आना॥

जब रात अधिक अंधियारी हो,
तारों ने साज संवारी हो,
रजनी के श्यामल अलकों में,
चन्दा ने सुध-बुध हारी हो।

मैं वीणा के तार मिलाऊँ।
तुम रागिनी बन कर आना॥
तुम चांदनी बन कर आना॥

कोई टिप्पणी नहीं: