गीत तो वह याद है पर स्वर खोते जा रहे हैं।
स्नेह के मंजुल क्षणों में,
प्राण का प्रतिदान लेकर,
मौन होकर निज व्यथा से,
या मिलन का ज्ञान खोकर;
चिर पिपासित हम मिले थे,
विरह का अवसान बनकर;
भूल न पाया घडी पर दृश्य मिटते जा रहे हैं।
गीत तो वह याद है पर स्वर खोते जा रहे हैं॥
मौनता के अंक में वह,
मूक वाणी चितवनों की;
अश्रू-जल की मुखर शक्ति,
विरह की तन्द्रिल कथाएं;
प्रणय-उश्मि घोल कर,
विस्मरण कर दीं व्यथाएं;
शब्द तेरे गूंजते पर भाव भूले जा रहे हैं।
गीत तो वह याद है पर स्वर खोते जा रहे हैं॥
जब न थम पाया ह्रदय में,
उमड़ कर आता प्रणय-स्वर;
गूँथ कर मंजुल लहरियां,
रागिनी भरती पवन;
झूम कर आसक्त- बोझिल,
खो दिया अस्तित्व अपना;
समर्पण भूला नहीं पर साथ छूटे जा रहे हैं।
गीत तो वह याद है पर स्वर खोते जा रहे हैं॥
ज्वार के उन्मुक्त क्षण में,
चेतना ने साथ छोड़ा;
ले चला संबल तुम्हारा,
दो क्षणों को स्वप्न जोड़ा;
पर न तुमको रोक पाया,
विश्व के संकुल डगर में;
पथ मिला पाथेय खोकर पग बढ़ते जा रहे हैं।
गीत तो वह याद है पर स्वर खोते जा रहे हैं॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें